Baba Sheelnath Mandir

 बाबा शील नाथ के मंदिर                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      बाबा शीलनाथ इसी गाव के रहने वाले थे वो शिव  चरन पुत्र श्री नाथिया पुत्र श्री फुसा राम के परिवार से थे उनका नाम ... था बाबा बनने से पहले बाबा घर से घी बेचने के लिए रेवाडी ले जा रहे थे उस समय गाव मे दुध ओर घी का  ही व्यापार होता था जब बाबा घी  बेचने के लिए रेवाडी जा रहे थे तो रास्ते मे घी गिर गया ओर  बाबा उस दिन  अपने घर नही आया ओर घर वाले भी कुछ दिनो बाद भुल गए ओर कई सालो बाद एक बाबा आज के पतुहेडा गाव के पास से पहले एक कच्चा रास्ता रेवाडी के लिए जाता था ओर पतुहेडा के पास एक कुई के साथ एक पिपल का पेड था उस्के निचे बाबा रहने लगे थे ओर त्पस्या खडे होकर ही करते थे उस समय जो भी उस रास्ते से जाता था उसे उसके नाम से बुलाता ओर गाव के बारे मे पता करता था लेकिन कोई भी बाबा को नही पहचान पाया था जब लोगो ने पता किया तो उन्होने  खुद हि बताया कि मैं .......   हूँ  ओर अब मेरे गुरु ने अबोहर रोहतक मे मुझे शील नाथ दिया हैं  फिर गाव उन्हे अपने मंदिर मे ले आया ओर आज जहा पर बाबा का घुना बना हैं  व साथ मे पिपल का पेड हैं उसी कि डाल पर झुला डालकर तप्स्या करते थे  ओर सालो तक यही पर तप्स्या कि ओर जब सरिर ने साथ देना बंद कर दिया तो बाबा ने यही पर जिते जी समाधी लेने कि कही तो गाव के लोगो  ने हाँ नहि भरी तो बाबा ने अबोहर ले जाने को कहा जब गाव वाले बाबा को लेकर अबोहर पहुचे तो उंके गुरु जी ने पहले से समाधी खुदवा रखी थी ओर बाबा के समाधि ले ली ओर दो दोनो बाद देखने को कहा था जब देखा तो बाबा का सरीर हि नही मिला तब बाबा के गुरु जी ने कहा कि इस मुर्ती को पहचान्ने मे मुझसे बहुत बडी गल्ती हो गई मेंने बाबा से बहुत कुछ जानना था ।     

उस समय गाव के लोगो  ने भी कहा कि इतनी बडी गलती हो गई यदि पहले पता होता तो बाबा को  गाव मे ही रख लेते ओर  हमे बाबा की सेवा के लिए ओर मोका मिल जाता ।                                                                

 गाव मे बाबा के शिध होने कि अनेक  कहनिया हैं-                                                                                                                                                                                                                                                                 1. श्री राम्जी लाल ( जीराम ) सरपंच  जी कहते थे की   बाबा धुने पर ही खडे रहकर ही तप करते थे ज्यादा खडे रहने के कार्ण  बाबा के पेरो मे किडे पड गए थे  जब किडे निकल जाते थे तो बाबा कहते थे की अपने घर से बाहर कुयो जा रहे हो कहते ओर वापिस डाल देते थे                                                                                                  2.बाबा के पास जो पहले खाना ले आते थे उसे ही खाते थे ओर बाबा अपने धुने मे ही पक्का कर चुर्मा बनाते थे ओर उसे सभी को प्रसाद के रुप मे देते हैं उस समय  मंदिर के पास बनी थी उसमे  गादडे  रहते थे उन्हे भी बाबा चुर्मा खिलाते थे कहते हैं कि एक दिन बाबा ने सुबह   हरराम के पिता जी को प्रसाद दिया ओर साथ मे ओर भी लोग थे तो    बाकी लोगो का प्रसाद देख कर  हरराम के पिता जी  अपने मन ही मन मे सोचने लगे कि बाबा ने मुझे कम प्रसाद दिया ओर वहाँ से अपने खेत कि ओर चले गए    जब वो शाम को  वापिस आये तो बाबा  ने कहा कि क्या कह रहे थे कि बाबा ने मुझे प्रसाद कम दिया  तो हरराम के पिता जी   कहने लगे कि नही, बाबा मैं तो ऐसे हि सोच रहा था इस्से पता लगा कि बाबा एक शिद्ध आत्मा थे ।

3. गाव के लोग कहते हैं कि जब 1956 का काल  पडा तो उस समय एक बिमारी भी गाव मे आई थी लोग मशाल लेकर पुरी रात फेरी लगाते थे ये फेरी बाबा के कहने पर हि लगाई जाती थी उस समय एसी हालात थी कि रात को एक दिपक एक गाव से दुसरे गाव मे जाता ओर जिस घर मे घुस जाता उसी घर मे मोत हो जाती थी  जब लोग रात मे फेरी लगा रहे थे तो एक दिपक मंग्लेशवर कि ओर से आया तो बाबा शील नाथ ने आकर उसे गाव के बाहर से हि वापिस लोता दिया ओर दुसरे दिन मंग्लेशवर मे एक मोत हो गई थी  जब लोग अपस मे बाते कर रहे थे तो एक गाव का ही रहने वाला कहने लगा कि कल रात को तो बाबा के पास मे पुरी रात था ओर बाबा भी वही पर था तो एसे तुम झुठ केसे कह सकते हो तो दोनो बाबा के पास गए तो बाबा कहने लगे कि दोनो सही कह रहे हो, इस्से हि गाव वालो को पता लगा की   शीलनाथ बाबा अपने शरीर को छोड देते थे ।

4.बाबा जब गाव से अबोहर जा रहे थे तो गाव के दो परिवार कि महिलाओ ने बाबा के पेर पक्ड लिए कि बाबा कुछ वर्दान दो कि मेरा वंस चल जाए तो बाबा कहने लगे कि मंदिर मे रोज घर से कोई ना कोई आते रहना होगा तो उन्होने कहा कि आयेगे ओर बाबा  जाते जाते कह गया कि  तुम्हारी मंसा पुरी हो जायेगी ओर फिर उन्हे पुत्र रतनो कि प्राप्ति हुई जिस के बाद दोनो धरो से कोई ना कोई बाबा के मंदिर मे सेवा करने आता हैं।   

बाबा शिलनाथ का मंदिर गाव मे काफी पहले से बना दिया था ओर नए मंदिर का निर्माण 2016 मे फिर से किया गया जिसमे गाव के लोगो ने बाबा के मंदिर को बनाने मे पुरा सहयोग दिया था । 

फाल्गुन मास की नवमी को भंडारा, कीर्तन बाबा शील नाथ की याद में किया जाता हैं ओर होली पर मेला लगता हैं।         


बाबा शील नाथ कि पुरानी मुर्ती
                                                                                                                                                                                                                                      
बाबा शिलनाथ का नया मंदिर 


बाबा शिलनाथ के नए मंदिर पर भंडारा

बाबा शिलनाथ के नए मंदिर मे हवन

बाबा शिलनाथ के नए मंदिर मे हवन

बाबा शिलनाथ के नए मंदिर मे हवन

 नए मंदिर के लिए चोपल मे कलस पुजन

 नए मंदिर के लिए चोपल मे कलस पुजन

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                



बाबा शील नाथ कि नई मुर्ती 

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