चोकण गुर्जरो के चार गांव हैं -
बावल, मंग्लेश्वर, बिशंपुर , गुज्जर माजरी।
1559 में बावल से आए थे। इससे पूर्व यह चिड़ि चौकड़ी राजस्थान से बावल (आज भगत सिंह पार्क के पास वाले मंदिर के पास बाद मे एक जो सबसे बडा भाई था वो आज कि बावल होली चोटे के पास बस गए थे। बावल आने का कारण चिड़ि चौकड़ी मे पुर्वजो का किसी से झगडा हो गया था उसमे कई मोत हो गई थी इसलिए उस जगह को छोड दिया ओर बावल आ गए थे गुज्जर गोत्र चोहन से ही चोकण गोत्र निकला हैं एक पुरानी कहावत थी कि गुजरो को दो ही चोधर मानी जाती थी पहली बावल ओर दुसरी दनकोर( उत्तर प्रदेश) थी । चारो भाई बावल मे एक साथ हि रहते थे । बडे भाई के नाम पर बावल बसा ओर फिर मोजीराम,मंगलिया,बेदा (बिरदा) , मंगलेशवर मे नेहर के बाद जो आज सरकारी जमिन मानी जाती हैं मे जो शिव मंदिर के पास हैं आए थे ओर फिर यही से अलग अलग जाकर तीन गाव आज जहाँ -जहाँ पर बाबा भाईया बने हैं सबसे पहले वही बसे थे बाद मे गाव का विसतार हुआ - श्री मंगलिया के नाम से मंग्लेसवर, श्री मोजी के नाम पर माजरी ओर बेदा (बिरदा) के नाम पर बिदावास गाव बसाया गया था श्री बेदा कि संतान नही होने के कारण आगे कोई वंस नही चला था ओर जमीन आदान प्रदान होती रही ओर आज के समय मे जाट जाती रहती हैं ।
बिशन पुर श्री मोजी राम जी कि लडकि बिसनी के नाम पर बसा था बिसनी को भी संतान ना होने के कारण बावल से गोद लेकर चोकण ही बसाए गए, जिस कारण ही आज भी बिशंपुर (इलास) मे चोकण ही रहते हैं श्री मोजी राम ने अपनी पुत्री को बिशंपुर कि जमिन दान दी थी इसलिए , जब बिसनी को संतान नही हुई तो दान कि जमिन पर रहने को मना कर दिया था फिर बडे भाई के बच्चो मे से एक को लाकर बसाया गया था।
बावल से आए चोकण रहने लगे तो दान कि जमीन के कारण बुजर्ग लोग स्वर्ग सिधारने पर भी बिशंपुर कि जमिन मे अंतीम सन्सकार नही करते थे, इसलिए माजरी के जोहड के पास ही समसान घाट के लिए जमीन दि गई थी ओर बिशनपुर के पंडीत भी माजरी मे ही रहते थे जिन्हे पंड्ताई के बदले जमीन डिगरीया के पास हि दि गई, जिसे अब तक पंडित हि प्रयोग करते थे ओर जिस जमिन पर दोनो गावो मे आज के समय मे कानूनी कार्येवाहि भी हुई लेकिन ये जमिन माजरी गाव कि हि थी
बिसनपुर मे इसलिए हि कोई दुसरी जाती नही मिलती कि दान कि जमिन होने के कारण, सभी कार्ये माजरी से हि होते थे, बिशंपुर के हरीजन भी माजरी मे ही रहते थे जो आज माजरी के ही होकर रह गए हैं बिसनी को जमिन दान देने का कारण था कि बिसनी आज के पटोदि के किसि गाव मे ब्याहि गई थी उस समय, उस गाव मे प्रथा थी कि जो भी नई दुल्हन गाव मे आती थी उसे पहले वहाँ के काजी के पास भेजा जाता था
बिसनी ने वहाँ जाने को मना कर दिया तो, बिसनी को गाव मे नही रहने दियागया तो श्री मोजी राम अपनी पुत्री को अपने साथ लेकर आए ओर कहा कि एक साथ घोडे पर जितना फेरा लगा लेगी, वो उसे दान दे दुंगा ओर बिशनि को आज जितनी जमीन बिशनपुर मे हैं उतनी हि जमीं पर बिसनी घुम पाई थी।
श्री मोजी राम जी के साले रावत थे जिन्हे भी गाव कि जमिन दान देकर बसाया वो गाव - इब्राहिम पुर(बिरामपर) ओर कमाल पुर (मुडनवास) हैं इसलिए आज तक इन दोनो गावो का चोकणो के गावो के साथ भाई चारा हैं । एक सथी माता का मंदिर जो थी तो इब्रहिम पुर कि ब्य्हता पर सती हुई मंग्लेसवर के डिगरिए मे थी। मंग्लेशर मे भोले नाथ का एक सिध्ध मंदिर हैं। जहाँ पर सावन मे चारो ओर के गाव कावड चडाते हैं।
आज भी गुज्जर माजरी के रिसते दिल्ली -जयपुर हाइवे पर जो छावडी के गावो मे नही होते हैं जिसका कारण हैं दस्को पहले एक घटना हुई थी संगवाडी गाव कि एक ब्यह्ता जो कि गुजरिवास से जा रही थी जिसे गुज्जर माजरी मे उस ओरत को लेकर आ गए थे फिर गुज्जर समाज कि पंचायते हुई ओर उसमे एक फेसला हुआ, कि यदी ये ओरत को वापिस नही करते हैं तो हमारे ( छावडीयो के गाव) रिस्ते, इन चोकणो के गावो से बंद हो जाएगे, इस घटना से पहले इन ,गावो मे चाकणो कि बरात जाती थी फिर जब रिसते बंद करने कि बात आई तो पंचायत मे भेडि गोत्र के गावो ने चोकणो को लड्कि देने कि बात कही ओर भिवाडी के पास ओर कोटा बिससर के पास वाले गुजर गावो ने लडकी लेने कि हाँ कर दि जिस्से यह पंचायत भंग हो गई थी लेकिन छावडियो के गावो ने तब से चोकनो के गावो मे रिस्ते बंद कर दिये थे समय गुजरा ओर गुजर माजरी को छोडकर बाकी तिनो गावो ने इन छावडियो के गावो मे ही लड्की देना सुरु कर दिया कि मनाही तो केवल माजरी की थी लेकिन आज भी इसी बात को लेकर माजरी ओर छावडियो के गावो मे कोई आपसी रिसते नही होते हैं।
आज इन चार गावो से अनेक गावो मे जाकर चोकण बस चुके हैं जिसमे सबसे ज्यदा दिल्ली मैं हैं ओर बिससर, भगेरी, ककरा, रेवाडी, लाधुवास आदी गावो मे हैं।
गाव ने मिलजुल कर 2015 मे बाबा सिल नाथ के नए मंदिर का निर्माण भी किया जो जिसमे गाव कि एक कमेटी बनाई गई जिसमे मुखए रूप से पुर्व सरपंच देवी चंद, बलेशवर पन्डित, दिना, पप्पु (ओमप्रकाश), हेमंत चोटी वाला, जित्ती (जितेंदेर),कमल,सुरेंदर कुमार, कबूल, इंद्र, जितान(जितेंद्र),जीतेंद्र दादा आदी मे मिल कर काम किया, फिर गाव कि चोपाल मे पंडित स्याम लाल ने पुजा अर्चना कि ओर बाबा कि मुर्ति स्थापना के लिए पुरे गाव कि परिक्र्मा डी.जे. ओर कलश यात्रा करके मंदिर तक पहुचाई गई फिर मंदिर मे हवन किया गया जिसमे सबसे बुजर्ग जोडा श्री जीराम सरपंच ओर गिंदा देवी का था जिन्की सादी को 60 साल हो चुके थे। उसी समय पर गाव के जोहड को गहरा ओर साफ किया गया था।
गांव में पूजनीय संत के रूप में बाबा मोहन दास भाडावास वाले की मान्यता है जिनका मंदिर रायपुर वाले रोड पर जो जोहड़ उसी में बना हुआ है। 2025 मे श्री बलेशवर पंडित जी ने बाबा मोहंदास के मंदिर को नया बनाने का काम सभी कि रजाबंदी से सुरु किया ओर गाव के गाव से बाहार रहने वाले लोग बाबा के मंदिर को बनाने के लिए बडी मात्रा मे दान दे रहे हैं मंदिर का काम चाल रहा हैं।
गांव का सबसे प्राचीन मंदिर ठाकुर जी का मंदिर है इसी मंदिर के पास एक शिव जी का मंदिर हैं जिसे सबसे पहले बनाया गया था इसकी देख्ररेख गुनना पंडित जी करते थे फिर महेश पंडित पुत्र श्री बनवारी पंडित इस मंदिर के पंडित हैं। इसी मंदिर कि देख रख के लिए ही पंडितो को जमिन दि गई थी इसे धोलि जमिन के नाम से दिया गया था जो कि बिशंपुर रोड पर सामेला कुआ पर डिगरिया के पास हैं।
इसके अलावा गाव मे देवनारायण मंदिर जो बाबा शिल्नाथ के मंदिर के पास हैं इसे 2020 मे बनाया गया हैं।
देवनारायण मंदिर को यहाँ पर बनाने मे श्री दिना पुत्र मंग्तिया, देशु पुत्र श्रीभानिया, महेंद्र घुडिया , बबल पुत्र श्री केप्ट्न नथुआ, भज्जल पुत्र श्री मन्ना राम आदी ने पुरे गाव कि सहयता ओर सहमती से बनाया ओर देवनारायण मंदिर कि दुसरी थाई बसती के पुत्रो ने अपने घर बना रखी हैं, शनि मंदिर जो गाव कि के गुजर्वास वाले रोड पर हैं ,बाबा देवरा का मंदिर बाबा शिल्नाथ के मंदिर के पास बना हैं जिसकि देख रेख मिठिया मोहल्ला कर रहा हैं, ओर इसी जोहड मे ही बाबा पचपिर कि मढी भी बनी हुई है।
भैया का मंदिर जो गाव के बसने के समय का है लेकिन पहले यह केवल निसान मात्र था लेकिन अब इसे पक्का बनाया गुआ हैं जो कि बेदराम के खेत मे हैं लेकिन उसके लिए जमिन सरकारी कागजो मे नही हैं और सेढ माई के मंदिर बना हुआ हैं इन सभी मंदिरों में गांव के सभी लोग श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा अर्चना करते हैं ।गांव में फाल्गुन मास की नवमी को भंडारा, कीर्तन बाबा शील नाथ की याद में, भाद्रपद की षष्टि को बाबा मोहनदास की स्मृति में भंडारा कीर्तन आयोजित किए जाते हैं। होली के दिन होलि दहन होता हैं होलि कि जगह विक्कि पुत्र श्री कासी राम चोकन ओर सुभराम (बुग्गड) के घर के पास हैं धुलंढी के दिन दोनो (बाबा शील नाथ,बाबा मोहनदास) मंदिरो मे लोग जाते हैं ओर जो लोग गाव से दुर रहते हैं वो भी इस दिन आते हैं ओर पहले पुरा गाव बाबा मोहन दास के मंदिर मे जाते हैं फिर प्रसाद लेकर बाबा शीलनाथ के मंदिर मे जाते हैं। ओर प्रसाद बाटा जाता हैं ।
पहले जब होली का डंडा रुप जाता था उस दिन से होली तक गाव कि चोपाल मे रागनी ओर सांग होते थे जिसमे रामकिशन, श्रीया(श्री राम ), लुडा( मनोहर), हरी सिंह, लक्शीमीनारायन चोकन आदी अपना सहयोग देते थे । ओर धुलंडी के दिन दोनो मंदिरो मे रागनी ओर सांग होते थे लेकिन समय बदला ओर आज 2025 मे न तो गाव मे नगारा बजता हैं ओर न ही रागनी ओर सांग होते हैं । सायद लोगो के पास समय नही हैं ओर जिस के पास समय हैं वो इस संस्क्रीर्ती को बचाए रखने मे कोई दिल चस्पी नही लेते हैं।
जनसंख्या की दृष्टि से गांव में गुर्जर 250 घर, ब्राह्मण 35 घर थे लेकिन आज केवल 8 घर ही गाव मे रहते हैं बाकि सभी सहरो मे रहने लगे हैं पंडितो ओर गुजारो का एक ही पंचायत घर हैं और हरिजन 250 घर ओर दो पंचायत घर कुम्हार 35 घर ओर एक पंचायत घर ,धानक 5 घर और बनिया एक घर रहते हैं ये सभी लोग वर्षों से प्यार प्रेम से रह रहे हैं । गाव मे गूजर चोकण गोत्र , पंडित कोसिकगोत्र, हरीजन मे हुरियावाल ओर तवर गोत्र हैं
गांव में जल स्रोत के रूप में समाध वाला कुआं मीठे पानी के लिए प्रसिद्ध था । मीठिया मोहल्ले मे दुसरा कुआं जो मीठे पानी के लिए प्रसिद्ध था आज दोनो कुए काम मे नही लिए जाते हैं क्योकि गाव के लग्भग घरो मे नल लगा हैं ओर साथ हि टुब्वेल लग्भग घरो मे लगी हई हैं और बाबा शीलनाथ का मंदिर मुडंवास कि तरफ वाले जोहड मे बना हुआ हैं बाबा शिलनाथ गाव का ही रहने वाला था जो कि नाथीया पुत्र फुसा के परिवार से थे। इलास मे जो बाबा लिखी नाथ का मंदिर हैं वहाँ भी पुरा गाव मेले मे जाता हैं ओर बाबा भी गाव के ही रहने वाले थे जो की सुंदर, सुडु के परीवार से थे।
गांव की कुल भूमि 900 बीघा है गांव के दरिया पुत्र देवी राम 1947 में मूल्य की पुत्र रामनाथ 1947 में भारत-पाक विभाजन के समय कश्मीर सीमा पर शहीद हुए ।मुंशी राम पुत्र झूथा राम मुंशी राम पुत्र भज्जू राम भारत चीन 1962 के युद्ध में शहीद हुए ।इनमें मुंशी पुत्र भज्जू राम का एक शव 62 वर्ष बाद सेना ने ढूंढ कर गांव भेजा था। 2 अक्तुम्बर 2024 मे गाव सेना द्वारा लाया गया ओर पुरे सम्मान के साथ उन्हे गुजरीवास के पास रोड पर अंतिम संस्कार किया गया ओर गाव कि ओर से 100 गज जमिन दि गई हैं। आज नई पिडी मे भी लोगो का सेना के प्रती आक्र्शन लग्भग पहले जेसा ही लग रहा हैं 2022 मे सेना ने 4 साल नोकारी कि अगनीवीर स्कीम लाई गई जिसमे भी गाव से पहले ही बेच मे तीन जवान सेना मे भार्ती हुए जो थल सेना मे कृशन सिंह पुत्र श्री देविंदर पुत्र श्री रामजी लाल व वायु सेना मे सनोज पुत्र कबुल सिह पुत्र श्री मन्ना ओर आर्मी मेडिकल कोर मे हरिओम पुत्र श्री जगदिस चोकन सेना के पहले ही बेच मे भर्ती हुए हैं ओर 2025 मे थल सेना मे पुत्र श्री रवी पुत्र श्री रामेशवर शिह ओर ...पुत्र श्री रोह्ताश चोकन पुत्र श्री दिन्ना भरती हुए हैं ।
गांव में जब सरकारी शिक्षा का अभाव था तो बाबा दाढ़ी वाला गांव की चौपाल में लोगों को पढ़ाते थे । उसके बाद बग्थला गाव कि चोपाल मे 5 वी तक स्कुल था उसके बाद बावल पढीई के लिए जाते थे ओर 1964 में गांव में सरकारी विद्यालय की स्थापना हुई जिसकी दो एकड़ जमीन उदमी राम ने दी थी । माजरी मंगलेश्वर और बिशनपुर गांवों का संयुक्त विद्यालय बना था ।विद्यालय भवन का निर्माण गांव के सामूहिक चंदा से हुआ था उस समय आसपास के लोगों ने भी विद्यालय बनाने में सहयोग किया था ।इसी विद्यालय परिसर में एक कमरा रामजीलाल पुत्र विशंभर दयाल ने पेसे के अभाव में रहते हूये भी अपने लिए रहने के लिए जीवन पर पक्का मकान नहीं बना लेकिन विद्यालय में एक पक्का मकान बनाकर दिया था ।महावीर पुत्र नंदकिशोर ,रामेश्वर पुत्र चेतराम ने एक-एक कमरे का निर्माण करवाया। गांव का पहला पढ़ा लिखा व्यक्ति विशंभर को माना जाता है जो 1918 में पढ़े लिखे थे। गांव में महिला शिक्षा का आरंभ 1965 शुरू हुआ। शिक्षा के लिए वर्तमान में गांव में 10+2 स्तर का पीएम श्री विद्यालय है इसके अतिरिक्त सरकारी, गैर सरकारी महिला और पुरुष मिलाकर पांच अध्यापक है । गांव के दो व्यक्ति एमबीबीएस डॉक्टर और एक बीएएमएस डॉक्टर है ।
गांव में प्राचीन वैद्य के रूप में विशंभर दयाल शर्मा नाडिया वैद्य हुए हैं गांव में छोटे-बड़े झगड़े होने पर गांव के पुर्वज गांव में ही बैठाकर उनके फैसल कर देते थे। विशेष घटना के रूप में गांव के शंकर लाल और गुरदयाल थे जिन्होंने राजस्थान के एक व्यक्ति को एक ही लाठी में सर से धड तक फाड़ दिया था और शंकर लाल को हथकड़ी हाथ में डाली नहीं इतने तगड़े थे। इस घटना की लोग अकसर चर्चा करते हैं।
संगीत के क्षेत्र में बाबा शंकर ,प्रताप झूथाराम अच्छे संगीतज्ञ थे और क्षेत्र में अपनी सांग विधा से लोगों का मनोरंजन करते थे। कला के दृष्टि से दादा मूलाराम के पास ऐसी विधा थी मनना था कि यदी किसी की कोई चीज खो जाती थी उसको नाखून में दिखा देते थे तथा लकड़ी से खेती और घरेलू उपकरण बनाने में सिद्धहस्त थे। खेल की दृष्टि से सुनीता चौकन पुत्री जौहरी सिंह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बेटी हुई । जीराम ( रामजी लाल ) सरपंच पुत्र श्री लेखराम ,टेकराम अपने समय के कबड्डी के अच्छे खिलाड़ी रहे । पर्यावरण पर काम करने वाले शंकर लाल के लगाएं अनेक पेड़ गांव के सार्वजनिक स्थानों पर देखे जा सकते हैं और वर्तमान में पंडित बालेश्वर इस काम को करते हैं ।
1947 से वर्तमान समय तक सेना और सशस्त्र बल के माध्यम से देश सेवा करने वालों की संख्या 150 है। 1947 से पूर्व यह गांव नाभा रियासत के अधीन होता था और गांव में नंबरदारी व्यवस्था थी । 1992 के बाद सरपंच बनने सुरु हुए तो पंडित जगदिश पहले सरपंच बने थे। पहला निरविरोध सरपंच जीराम ( 1995) ओर दुसरा निरविरोध सरपंच( पहली महिला निरविरोध सरपंच) अनिता वधु श्री विक्की चोकन (2024) मे बनाया गया।
गाव मे अनेक काम गाव कि पंचायत ने मिल कर किया ओर अनेक फेसले भी गाव कि पंचायत ही करती थी गाव मे 1995 के दोरान गाव मे चारो कोर देसी दारु बिकती थी इससे तंग आकर गाव के लोगो ने गाव मे पंचायत लेवल पर ही गाव मे बंद कर दि थी ओर जो पकडा जाता था उसको भरी पंचायत मे पेसे ओर माफी मागनी होती थी ओर दारु भी गाव मे बंद हो गई थी उसके 5 साल बाद हरयाना सरकार ने बंद की थी
फिर गाव के स्कुल को 12वी तक करने कि गाव कि पंचायत ने सोची ओर उसके लिए स्कुल मे काफी काम किया था जेसे चार दिवारी ओर कमरो कि संख्या बढाई गई लेकिन पेसे सरकार ने नही दिया था गाव ने इसके लिए पंचायत कि जमीन पर लगे पेड जो काभी संख्या मे थे को अपने लेवल पर बेच कर पुरा किया ओर फिर स्कुल मे 12वी का बोर्ड लाने कि कोसीस सुरु कि ओर बोर्ड भी गाव के लोग लेकर आए- जिसमे गाव के सरपंच राम सिह,जिराम, सुखी राम, देवी चंद ओर नाथिया, गबदु,प्रभाती, नथु केप्टन, मासटर मुंन्शी पंडित (लालपुर ) ओर डाक्टर एम एल रंगा ( एम.एल.ए.)आदी कि किसिसो के कारण हुआ था।
स्वच्छता के क्षेत्र में गांव के सभी घरों में शौचालय बने हुए हैं सभी लोग घर में शौचालय का प्रयोग करते हैं गांव की गलियां पक्की है गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनी हुई है । सफाई के प्रति अभी जागरूकता का अभाव गांव में दिखाई देता है ।स्वास्थ्य के क्षेत्र में गांव में उपस्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है
गांव के किसान सामान्य गेहूं सरसों बाजरा की खेती करते हैं। लेकिन कपास कि फसल पुरे गाव मे बाबा बंदेव कि मन्य्ता के कारण नही कि जाती हैं। व्यवसाय के रूप में गांव की डेयरी और दूध के लिए यह गांव प्रसिद्ध है इस गांव के अनेक लोगों की गांव से बाहर भी अनेक डेरिया है ।कोरोना महामारी के दौरान गांव में चार मौत हुई उसके बाद गांव के प्रमुख और प्रबुद्ध लोगों ने मिलकर संयम और अनुशासन से इस महामारी का मुकाबला किया। इस कठिन समय में गांव के पंडित बालेश्वर जी और उनकी टीम ने अभावग्रस्त लोगों की सहायता की। इस दोरान ही विक्की पुत्र श्री काशी कि युवा टिम ने कोरोना के दोरान काम किया था जिन्हे बाद मे 2022 मे गाव का निर्विरोध ( उन्की पत्नि को) सरपंच बनाया गया साथ मे हि पुरी पंचायत ही निर्विरोध बनाई गई थी यह गाव कि पहली महिला सरपंच निर्विरोध बनी ओर इससे पहले 1995 मे जिराम सरपंच को पहली बार निर्विरोध बनाया गया था अब विक्की सरपंच ने गाव मे विकाश कार्यो कि झडी सी लगा दी हैं ।
हम आसा करते हैं कि हमारा गाव यु ही आगे बढ्ता रहे ओर सुख शान्ती गाव मे बनी रहे ।
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